लेखक– नरपतदान बारहठ
कुदरत की दहलीज़ पर बसंत की दस्तक।बसंत यानि प्यार और सौंदर्य से पूरित मौसम।बसंत यानि प्रकृति का यौवन। इस मौसम में जब धरा आपादमस्तक रंगीन श्रृंगार कर लेती है,तब मन में दबे प्रेमपगे, आनंद भरे मनोभावों से चादर हटती है।कल्पनाओं के साकार होने की यह ऋतु साल का एक मौसम भर नहीं है, यह मनजीवन में रचे-बसे भावों को खुलकर जीने का पड़ाव हैं।बसंत में उमंग है, उल्लास है, आस है, बस इसीलिए तो खास है।इसके आगमन से चर–अचर सबके भीतर उल्लास परवान चढ़ता है।रूह की चौखट पर कुछ मादक सी हलचल मन के तारों को झंकृत करती है। झंकृत हो भी क्यों नहीं। क्योंकि यह बसंत है जिसमें न बर्फ़ का कुहरा है, न ग्रीष्म का उबाल है, न बरखा की उमस है।यह कोई आम ऋतु नहीं, ऋतुओं का राजकुमार है।छह ऋतुओं में इसका काल रंगीन मिजाजी है।महीनों से शिशिर के सन्ताप से कोठरों में दुबके विहंग अब स्वच्छन्द व्योम में विचरण को व्याकुल हैं।वृक्षों की टहनियां हरित नव पल्लव को धारण करने लगी हैं।बागों में नवजात पुष्प हर्षित हैं।कहीँ कली कली खिलने को कुलबुला रही हैं,तो कहीं कोपलें फूटने को उतावली हो रही हैं।वृन्त-वृन्त पर तितलियों की चहलकदमी शुरू हुई हैं।भ्रमर की गुंजन से सारा संसार मधुर स्वर लहरी में गोते लगा रहा है।ग्रीष्म से निर्वस्त्र खे़त ख़लिहान अब सरसों का पीताम्बर पहने हैं।रूखे आमों में बौर आने लगी हैं।भोर की किरण कोहरे से भीगी सहमी सहमी नही है अब।अब वो गगन में पीताभ बिखेर कर मुसकरा रही है।पौष के जाड़े से ठिठकी वसुंधरा अब नव दुल्हन सा सौंदर्य धारण कर अकुला रही है,प्रफुल्लित हो रही है,मदमस्त हो रही है।बासन्ती बयार अपना रुख बदलकर कुछ खुशबू समेट रही है, तो कुछ खुशबु बिखेर रही हैं और अपने झोंकों से हमें कह रही है जैसे मैं फूलों को दिल में और उनकी महक होंठों में रख के चलूँ उसी तरह तुम भी दिल में प्यार के फूल रख दो और अपनी जुबां,अपने लफ्ज़ो से उसकी महक न्योछावर कर दो।तुमसे भी सब प्यार करेंगे।ये धूसर आसमां, जो कल तक बेरंग था,अब गहरी नीली आभा का कलेवर लिये खुला खुुुला है, स्वच्छ है।स्वच्छ जीवनशैली जीने और आदतों का आवरण बदलने का संकेत दे रहा।सूरज में कल जहाॅं शीत से तपिस कम थी, मगर अब सकल प्राणियों में नवीन ऊर्जा भर रहा।यह सिर्फ़ बसंत का ही कमाल है।और बासन्ती चांदनी रात की तो बात ही क्या!एक दम धवल, निर्मल, उज्ज्वल और शीतलतायुक्त।मानो कह रही -तुम भी आचरण धवल कर दो,मन निर्मल कर दो,तन उज्ज्वल और वाणी शीतल कर दो फिर मुस्कान तुम्हारे होठों से सदासर्वदा चिपकी रहेगी।यह सिर्फ़ बसन्त का ही कमाल है।सब कुछ उमंग और उत्साह से भरा। मनमोहक और मानवीय भावों से उपजा। और हां, बसंत प्रेमपगे अहसासों की ऋतु तो है ही, यह प्रेम को जानने और उसे विस्तार देने का संदेश भी लिए है।बसंत में मन का मौसम प्रेम को जीता है।प्रेम के मायने है– सह-अस्तित्व की भावना। और बसंत में पूरी प्रकृति इस सह-अस्तित्व के भाव को जीती नजर आती हैं। ज़िंदगी को जी लेने के अहसासों से लबरेज़ यह गुनगुना मौसम ऊर्जा, लगन, विश्वास से जीवन में सौंदर्य भरने और परोपकार, दया, सेवा का भाव हृदय में रखने का अवसर भी प्रदान करता है। एक ओर खिलखिलाती प्रकृति, तो दूसरी और हर दिल में पलती प्रेम की उमंगें, प्रकृति और संस्कृति का आलिंगन है। सार की बात यही कि बसंत में निराश मन को छोड़ कर आशा की और प्रवास करें। हर वर्ष बसंत से मुलाक़ात कर थोड़ा ठनक कर हॅंसे, थोड़ा शून्य में ठहरें, थोड़ा रुकें, थोड़ा चहलकदमी करें ,थोड़ा ठिठकें, थोड़ा रूमानी बनें, और थोड़ा रूहानी हो गहन मनन करें और तनिक चहककर कर आनंद में डूब जाएं।क्योंकि बसंत महज़ मौसम नहीं, बसंत जीने का अहसास है। यह अंतस में बसी उमंग है,प्रेम की हिलोर है, यह प्रकृति की सोच और एक अजीब संकोच है।जब पूछे कोई कि क्या कहता है बसंत, तो यही जवाब दें कि यह बसंत की ही मर्ज़ी वह कैसे ख़ुद की अभिव्यक्ति दे। बहरहाल, सार रूप यही कि यह ऋतु परिवर्तन जीवन परिवर्तन की सीख देने वाला वक़्त है।लोगों के मनोभाव और हृदय भी प्रेमिल, रंगीन, प्रसन्न और मोहक बन जाए यही संदेश है इस ऋतुराज का।प्राणी मानसिक और शारीरिक संकल्प से प्रेम,परोपकार, पुण्य और कल्याण के लिए कार्य करे यह मूलभाव है इसका।